मेरे पिता को मारा नागरिक-शास्त्र की एक किताब ने

वे उसे पकड़कर ले जा रहे थे
दो आदमी लम्बे, उसे दोनों बाँहों से पकड़कर हवा में उठाए हुए,
उसके पैर जैसे तैरते थे छटपटाते,
जो पाली थी उसने सात महीने पहले,
वह बिल्ली उसके पीछे दौड़ती जा रही थी
बिल्ली का एक बच्चा जंगले से बाहर कूदा और खो गया

आप कहाँ थे उस समय?
यह मैंने अपने सब पड़ोसियों से पूछा
जो अच्छे और सभ्य थे हर अच्छी तरह से
रोज़ अपने दरवाजों के आगे झाड़ू लगाकर रंगोली बनाते थे,
हैडफ़ोन लगाकर ही सुना करते थे गाने,
मैं जब निकलता था तो उनके बच्चे सिर झुकाकर कहते थे मुझे नमस्ते
एक कुत्ते को ज़रूर बहुत मारा उन्होंने पिछली पन्द्रह अगस्त को
उसका सिर गटर के मुहाने पर मिला बिल्कुल लाल
उसके माथे पर सिंदूर या लाल मिर्च का टीका था,
माफ़ कीजिए कि मैं चीजों को उनके रंग से नहीं पहचान पाता, न ही गंध से
मैं चीजों को उतना जानता हूं बस, जितनी वे मुझसे नफ़रत किया करती हैं

और वह गटर था यूं भी, बाद में एक सांवला लड़का आया जींस पहने और पुरानी टीशर्ट
जिस पर लिक्खा था बीइंग ह्यूमन
उसकी आँखों में भुलक्कड़ी थी ज़रूरी
वो किसी भी क्लास में मेरा दोस्त हो सकता था या बड़ा भाई,
लेकिन नहीं था

वह होल में कूदा एक रस्सी बाँधकर, बच्चों ने बजाई ताली
उस दिन मैंने उससे कहा था, साढ़े पाँच फ़ीट की उस लड़की से
जिसका नाम रोशनी था या रोशनी होना चाहिए था
कि हम गाँव लौटेंगे जल्दी, खेत में ही दफ़न होंगे अपने,
उसने बनाई थी चाय और उसका हाथ हमारे आँगन के आकार में जल गया था

गाँव एक अच्छा सपना था, तसल्ली कि हम कुफ़्र नहीं,
एक सौ बाईस लोगों का परिवार था कभी, जिसमें से आधे लापता हुए,
बचे हुओं में आधों ने बदले नाम,
कुछ ने की आत्महत्या,
कुछ लड़के कुछ लड़कियों को लेकर भाग गए
और बसों के बोनट, हज्जामों की कुर्सियों पर या धर्मशालाओं के बाथरूमों में क़त्ल कर दिए गए   
जो लौटे, उनमें से कुछ दुनिया को फ़सल की तरह देखते थे और काटना चाहते थे
उनमें से कुछ ने खरीदे बारह-बारह सौ में कट्टे और अपनी ज़मीनें बचाईं, दूसरों की ली उनकी जान बचाने के एवज में

हम पढ़ने लगे थे,
घर में एक ऐटलस थी सुन्दर और उसने हमें मारा,
मेरे पिता को मारा नागरिक-शास्त्र की एक किताब ने
जिसे लेकर चिल्लाते हुए वे थाने गए थे और नहीं लौटे,
एक सुबह मैं आँगन में बैठा पढ़ रहा था किसी अख़बार का सम्पादकीय
माँ बना रही थी रोटी,
मुझे दूध देखते रहने का कहकर वह अचानक बाहर गई और कुएँ में कूद गई

मैंने बिखरने नहीं दिया दूध

मैं उसके बालों के लिए मेंहदी लेकर लौटा
एक चप्पल उसकी मुझे सड़क पर मिली बाहर
कंघी वॉशिंग मशीन पर, जहाँ शीशा रखते हैं हम सामने
सुबह पहनी थी जो उसने
, उस टी-शर्ट की पीठ पर छेद था
और वह टीवी पर लटक रही थी

मैं टीशर्ट रफ़ू करवाने गया
और फिर मैंने परदे लगाए खिड़कियों पर

उसकी ओर के बिस्तर पर सोया मैं सारी रात
रंगीन तकिये मांगते हुए आया सुबह एक भटका सा बच्चा
उसके गाल पर कटे का निशान था

चाकू से कटा क्या, मैंने पूछा

वह ना किसानों के बारे में जानता था, ना आलू के
वह पानी की हत्या करना चाहता था और पत्थर लिये घूमता था
मैं गुलाल लाया भीतर से और उसके चेहरे पर रंगा