कुछ एसएमएस और हिसार में प्यार की हत्या!

यह 'हिसार में हाहाकार' नामक कहानी का तीसरा भाग है।
आगे बढ़ने से पहले, पहले दोनों भाग पढ़ लेंगे तो आपको तसल्ली रहेगी। :-)

आग से अगली ही सुबह शमशेर सिंह दिल्ली में अपनी बेटियों के कमरे पर गए थे। उनके आने के पाँच मिनट बाद श्वेता वहाँ से चली गई और दो दिन तक वापस नहीं आई, जब तक कि उसके पिता वापस नहीं चले गए। उससे अगले दिन के अख़बार से राहुल को पता चला कि हलदस में कुछ भयानक हुआ है। उसने अपने पिता के बॉस यानी शमशेर सिंह के फ़ोन पर कॉल की तो घंटी ऊपर श्वेता और नंदिनी के कमरे में बजी। यह राहुल को नहीं सुनी क्योंकि शोर इतना था कि अपने ख़याल भी चीखे जाने पर सुनाई देते थे और शोर भी होता, तब भी तीसरी मंजिल बहुत ऊपर थी। शमशेर सिंह ने उन दो दिनों में अपने घर के नम्बर के सिवा किसी का फ़ोन नहीं उठाया। राहुल ने सरदार महेन्द्र सिंह से एक दिन की छुट्टी माँगी, जो नहीं मिली। उसे महीने के बीत चुके आठ दिनों की तनख़्वाह लिए बिना नौकरी छोड़नी पड़ी। गुस्से में उसने अपनी लगाई गुरूनानक देव जी की तस्वीर उतारी और बाहर कूड़ेदान में फेंक दी।
नौकरी छोड़कर उसने एक दूसरे अख़बार में मृतकों की सूची देखी और पहला नाम रोशन राय पाया। (ज़ाहिर है कि ऐसी ख़बरों को इतने विस्तार से छापने के कारण उस अख़बार की लोकप्रियता इतनी कम होती जा रही थी कि अगले महीने लगातार नौ दिन तक कैटरीना कैफ़ की बहन के अश्लील वीडियो को अपनी कवर स्टोरी बनाकर ही वह अपनी ज़िन्दगी बचा पाया)
दुख आकाश में कहीं शुरू हुआ। उसकी माँ रीना बारिश शुरू होने की आशंका में बाहर तार पर सूख रहे कपड़ों को उतारकर भीतर ला रही थी।
- माँ राहुल ने कहा और उसके हाथ में अख़बार देखकर रीना समझ गई कि कोई बुरी ख़बर है और भागकर कमरे में बन्द हो गई। एक घंटे तक राहुल रोया और उसकी माँ जब निकलीं तो अपनी शादी के जोड़े में थीं और मुस्कुरा रही थीं। शादी की रात की तरह तब भी उनके ऊपर सच बोलने का ख़ुमार छाया हुआ था, इसलिए उन्होंने राहुल को पुचकारकर अपनी छाती से लगाया और कहानी सुनाई।
यह कि एक बढ़ई था, जिसका नाम राजकुमार था, जो डरकर भाग गया था और फिर बार-बार लौटता था। उसके सीने के बाल चाँदी के रंग के थे और वे उन बालों के छल्लों को अपनी उंगलियों में पहनती थीं। उन्होंने राहुल को जलती हुई लकड़ियों और फिर शमशान सी उदास सुबह के बारे में बताया, जब आधे घंटे के लिए रोशन राय दरवाज़ा खटखटाने वाले आदमी को ढूँढ़ते रहे थे और यहाँ रुककर वे रोने लगीं रोशन राय के लिए, जिन्हें कुछ भी नहीं मिला था, सबसे सच्ची औरतें जिनके इर्द-गिर्द भ्रम का परदा रच देती थीं, जो मरने तक नहीं जान पाए थे कि वे राहुल के पिता नहीं हैं।
यह उन्हें पता होता तो वे बचपन में राहुल को कम मारते और उतना ख़याल रखते, जितना किसी अमानत का रखा जाता है।
माँ की बातें राहुल को पागलपन लगीं या ऐसा उसने अपने आपको समझाया। उसने सोचा कि राजकुमार नाम के ऐसे किसी भी आदमी को वह शक्ति कपूर जैसा खलनायक ही समझेगा और किसी फ़िल्म में ऐसा किरदार देखेगा तो उसके मरने की कामना करेगा।
मृत्यु की गंध औरतें दूर से ही पहचान जाती हैं इसलिए आठ-नौ पड़ोसनें इकट्ठा हो गई थीं। उनके भरोसे अपनी माँ को छोड़कर राहुल आईएसबीटी के लिए निकला, जहाँ से उसे हरियाणा रोडवेज की वह बस पकड़नी थी, जिसका ड्राइवर गालियों के सिवा हर शब्द में हकलाता था।
महम में खाने के लिए बस रुकी तो उसने श्वेता को फ़ोन किया और अपने पिता की मृत्यु के बारे में बताया। श्वेता ने उसका अविश्वास किया, जैसे पिता अमर होते हों। तब राहुल ने रूआँसे स्वर में उसे हलदस के दलित नरसंहार से जोड़कर बताया।
अगर वे दोनों कुछ दिन पहले जान जाते कि उनमें से एक के पिता, दूसरे के पिता के घर में नौकर हैं तो क्या इसकी कुछ संभावना है कि घटनाएँ कुछ अलग तरह से होतीं? शायद नहीं। इसलिए यह देर से पता चलना, पछतावे वाला पता चलना नहीं है, सिर्फ़ दुख वाला पता चलना है, जिसमें राहुल ने अपना मोबाइल ज़मीन पर पटकने से पहले श्वेता को बताया कि वह उसके गाँव जा रहा है। वह कोई शाहरुख ख़ान नहीं था कि अपने पिता के हत्यारे से बदला लेने जा रहा हो, लेकिन फिर भी श्वेता को बता देना चाहिए था कि शमशेर सिंह दिल्ली में है। उसने नहीं बताया।
राहुल को हलदस में नहीं घुसने दिया गया। गाँव में कम से कम ढ़ाई सौ पुलिसवाले तैनात थे और उनके अनुसार किसी तरह का जातिगत तनाव बढ़ने की आशंका को देखते हुए बाहर के किसी आदमी को गाँव में दाख़िल होने नहीं दिया जा सकता था। तनाव की आशंका तब थी, जब एक वर्ग समूल नष्ट किया जा चुका था। पुलिस द्वारा बनाई गई सीमारेखा पर टीवी और अख़बारों के पचासों रिपोर्टर जमा थे। उनमें से आधों के लिए यह पिकनिक जैसा था। राहुल को पता चला कि पोस्टमार्टम के बाद लाशों का सामूहिक अंतिम-संस्कार भी किया जा चुका है और दूर जो आग की लपटें उठ रही हैं, उनमें ही कहीं, उसके पिता का दुख भी है।
भूख और अनिद्रा से भरे चालीस घंटे हलदस की सीमा पर बिताने के बाद जब वह दिल्ली लौटा तो श्वेता वहाँ नहीं थी। शमशेर सिंह के गाँव लौटने के कुछ घंटों बाद नंदिनी ने श्वेता को फ़ोन करके कहा कि माँ बहुत बीमार है और अभी हम दोनों से मिलना चाहती है। उसने घर फ़ोन करके माँ से बात की। वह आजा बेटी कह-कहकर खाँसती और रोती रही। माँ से भी उसे ख़ास मोहब्बत नहीं थी लेकिन फिर भी वह जाने को तैयार हो गई।
बाद में टीवी पर एक बहस के दौरान उग्र हुई जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की एक लड़की ने कहा- कोई लड़की यह कल्पना भी नहीं कर सकती कि उसके माँ-बाप उसे मार डालेंगे, चाहे वे कितने भी रूढ़िवादी क्यों हों। आप किसी भी लड़की या लड़के से कहेंगे कि उसकी माँ मरने वाली है तो वह अपने ऊपर तनी किसी पिस्तौल या ज़हर मिले दूध के बारे में कैसे सोच सकता है भला? लेकिन यदि ऐसी घटनाएँ होती रहीं तो प्यार करने वाली लड़कियाँ अपनी माँ या पिता की मौत की ख़बर को बस एक छल समझने लगेंगी, एक अति नाटकीय छल।
दरअसल नंदिनी ने शमशेर को श्वेता और राहुल के रिश्ते के बारे में बताया था। यह ज़ोर देकर कि राहुल चमार है। शमशेर सिंह दिल्ली में अपनी मर्ज़ी से उस प्रकरण को हैंडल नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को फ़ोन करके बीमार पड़ने को कहा। फिर नंदिनी से कहा कि उनके जाने के बाद वह श्वेता को यह ख़बर दे और किसी भी तरह उसे हलदस में ले आए। नंदिनी को भी अपने पिता की तरह अपनी जाति का गर्व था और उसने सोचा कि ऐसा ही समय होता है, जब इंसान के ज़मीर की परीक्षा होती है। उसने अपनी आवाज़ में पूरा तनाव और उदासी भरकर अपनी बहन को फ़ोन किया और और फिर पूरे रास्ते भी फ़िक्रमंद होने का दिखावा करती रही। इतना कि महम में जब बस रुकी तो वह बाथरूम में जाकर ज़ोर-ज़ोर से हँसी।
पुलिस द्वारा बनाई गई सीमारेखा पर शमशेर सिंह श्वेता और नंदिनी को लेने आए। उनके थानेदार भांजे आनन्द चौधरी ने उनके पैर छुए। शमशेर सिंह दो मिनट तक उसके कान में कुछ फुसफुसाते रहे। वह ठीक है-ठीक है कहता रहा।
घर पहुँचने पर श्वेता ने अपनी माँ को बिल्कुल दुरुस्त पाया और उसी क्षण यह भी जान लिया कि अब वह पूरी तरह जाल में फँस चुकी है। उसी क्षण शमशेर सिंह ने उसे अगले चार दिनों तक चलने वाली यातना का पहला तमाचा मारा और आसमान में सूरज डूबना शुरू हुआ।
दुनिया के स्नानघर जब बनने शुरू हुए होंगे, तब उन्हें अन्दाज़ा भी नहीं होगा कि हरियाणा के एक गाँव में एक दिन वे ही आख़िरी शरण बचेंगे, जहाँ छिपकर श्वेता राहुल को कुछ मैसेज भेज पाएगी। वह भी दो दिन तक। तीसरे दिन उसका मोबाइल छीनकर तोड़ दिया गया।
उसे दिन में कई बार पीटा जाता। पहले दो दिन उसकी माँ ने उसे प्यार से समझाने की कोशिश भी की। औरत का नसीब और गाँव-देहात-समाज की बातें। उन्होंने आसपास के गाँवों की ट्रैक्टर से कुचलने और दराँती से टुकड़े टुकड़े करने वाली वीभत्स सजाओं के बारे में उसे बताया।
- वे तो फेर भी अपणी जात मे ब्याह कर री थी, तू तो ढेड़ के पाछै बावळी हो री है।
वे रो दीं और जैसी उनकी आदत थी, अपनी झोली बेटी के सामने फैलाकर उससे उसकी ही जान की भीख माँगने लगीं।
यह सब भी दोनों दिन तीन बार ही हुआ, तीनों वक़्त की मार से ठीक पहले। जब वे रोती हुई बाहर निकलतीं तो शमशेर अपने भाई ओमबीर और बीस साल के बेटे रोहताश के साथ बाहर खड़ा होता। एक इशारा था, जिसका अर्थ था- नहीं मानी। उसके बाद तीनों अन्दर आते और दरवाज़ा बन्द कर लेते।
क्या आपने उन्हें नहीं देखा? टीवी पर बार-बार बेशर्मी से कहते हुए कि यह वेदों में लिखा है कि अपने समाज के नियमों का पालन करवाने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं।
आसमान थोड़ा सिकुड़ने लगता था, बाहर खड़ी भैंसें थोड़ी और बेचारी होने लगती थीं और कोई भी आम पंचायत एक लड़की के चिल्लाने और तीन बलशाली पुरुषों द्वारा उसे मारते जाने को ऋग्वेद के किसी श्लोक से जोड़ सकती थी।
उसके कुछ एसएमएस यूँ थे-
Mera pyara rahul kaisha hai? Tu apna khayal rakhna baby…hum kuchh karenge…main hun na tere saath..
Main jaldi aa jaaungi. Mummy ki tabiyat ab better hai…yahan mausam bhi bahut achcha hai…love you a lot…
Nahi nahi. Tu yahan mat aana. Main shayad kal parson taka aa jaungi. Dukan ke lie pareshan mat raha kar tu…aunty ka khayal b toh rakhna hai tujhe..kuchh karenge hum, mere sweetheart baby…love you..
Tujhe aisaa kyun lag raha hai ki main pareshan hun? Mummy ke saamne baatein ni kar sakti isliye sms karti hun. Kuchh bhi sochta hai pagal J
Tu mat aana please..main bilkul theek hoon. Nandini b tujhe yad karti hai. Love you..
आख़िरी एसएमएस था- ye mujhe mar daleng
तीसरे दिन से माँ का आना बन्द हो गया। नंदिनी ननिहाल चली गई थी। श्वेता को खाट पर रस्सी से बाँध दिया गया था, जहाँ से सिर्फ़ बाथरूम जाने के लिए उठा जा सकता था। वह रस्सी उसके हाथ पर बँधी थी, जिससे खींचकर शमशेर उसे बाथरूम तक ले जाता था और बाहर खड़ा रहता था। यह आस-पड़ोस के सब लोग आराम से देख सकते थे।
श्वेता के हाथ और पैर सूज गए थे। उसने तीन दिन से कपड़े नहीं बदले थे और वह लड़खड़ाकर चलती थी। चौथे दिन की दोपहर उसकी माँ नया सूट लेकर आई और उसे नहाकर तैयार हो जाने को कहा।
- क्यों?
- लड़के वाळे रहे हैं अर जो घणे नाटक करे, तेरा बाप काट देगा तन्नै...
- हरामज़ादी कुतिया है तू माँ...
उसकी माँ ने डंडा उठाकर उसकी पीठ में मारा। वह रोई और गालियाँ बकती रही। उसने कपड़े पहनने और लड़के वालों के सामने हाज़िर होने से इनकार कर दिया, चाहे उसे मार ही क्यों दिया जाए।
अगली सुबह घर में शांति थी। शमशेर अपने बेटे और भाई के साथ हिसार चला गया था। जब बाथरूम जाने के लिए श्वेता ने अपनी चप्पल उठाकर ज़ोर-ज़ोर से ज़मीन पर मारी तो उसकी माँ आई। इतनी निष्पाप लगती हुई, जितना बच्चे माँ को समझते हैं। श्वेता रस्सियों से खाट पर बँधी हुई थी। उसकी माँ उसके पास बैठ गई और उसका सिर प्यार से अपनी गोद में रख लिया। इतने से ही श्वेता सुबकने लगी। उसने अपने बचपन की बातें माँ से कीं कि कैसे वह चाहती थी कि अपनी फ़्रॉक का सिरा माँ की चुन्नी से बाँध ले ताकि हरदम माँ के साथ रह सके, कैसे वह उसे दिल्ली ले जाकर एक नई दुनिया दिखाना चाहती थी, जहाँ औरतें अंग्रेज़ी बोलती हैं, जहाँ बच्चे पैदा करने और यहाँ तक कि पति द्वारा चूमे जाने में भी औरत की सहमति ज़रूरी होती है।
- मुझे खोल दे माँ और तू भी मेरे साथ चल। मैं कमाऊँगी। हम रह लेंगे कहीं भी...
माँ उसके बाल सहलाती रही। यदि श्वेता राहुल को उस पल कोई एसएमएस कर पाती तो वह होता- अब सब ठीक है, मैं रही हूँ स्वीटहार्ट।
जैसे वह रिमोटकंट्रोल से नियंत्रित हो रही हो, उसकी माँ ने तकिया उठाया और श्वेता के मुँह पर रखकर उसे दबा दिया।
छटपटाना बन्द होने के बाद उसने तकिया हटाया। श्वेता की आँखें खुली थीं और नाक से हल्का-सा खून बह रहा था। उसकी माँ ने फ़ुर्ती से रस्सियाँ खोलीं और बाहर बँधी भैंसों के पैरों में फेंक आई। फिर वापस आकर श्वेता की आँखें बन्द करके उसने छाती पीटना और चिल्लाना शुरू किया।
- के खा लिया मेरी बेट्टी?
यह वह घंटों तक चिल्लाई, जब तक कि बेहोश नहीं हो गई। औरतें आईं और रोईं, ठीक उसी तरह, जिस तरह वे हर बार रोती थीं। फिर उन्हें कमरे से बाहर जाने का हुक्म मिला और वे सिर झुकाकर निकल गईं, जैसे हर बार निकल जाती थीं। फिर कुछ आदमी आए और साथ में तीन सिपाहियों के साथ थानेदार आनन्द चौधरी। श्वेता को एक जीप में डालकर पास के सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहाँ मौज़ूद इकलौता डॉक्टर प्रेम कुमार सिर्फ़ एमबीबीएस था और उसने कहा कि वह पोस्टमॉर्टम नहीं कर सकता। आनन्द चौधरी ने कहा कि उसे अभी पोस्टमॉर्टम करना होगा और फिर रिपोर्ट भी लिखनी होगी, जिसमें दो-चार सच्ची चीजों के साथ मौत का कारण कीटनाशक पीना लिखा होगा।
जब प्यार में तीन बार मार खाए पच्चीस वर्षीय प्रेम कुमार को मुर्दाघर में कुछ औजारों और श्वेता के साथ बन्द कर दिया गया, तब उसे लगा कि यह पूरे हिसार की सबसे ख़ूबसूरत लड़की की लाश है। उसे उसके मरने का अफ़सोस हुआ और उसने उसके गालों को सहलाया।
अब सब ठीक है, मैं रही हूँ स्वीटहार्ट- यह मैसेज राहुल को तीन मिनट बाद मिला, जो प्रेम कुमार के मोबाइल से भेजा गया था। गालों को सहलाए जाने के दौरान श्वेता ने अचानक आँखें खोली थीं और मैं ज़िन्दा हूँ, प्लीज़ चुप रहना कहते हुए प्रेम कुमार के मुँह पर हाथ रख दिया था। प्रेम कुमार की आँखों के आगे अँधेरा छा गया था और पाँच सेकंड में उसके जीवन के पच्चीस साल उस अँधेरे में तैर गए थे। यह तो मरने के वक़्त ही होता है उसने सोचा था और गिरते-गिरते बचा था। फुसफुसाकर दो मिनट में श्वेता ने उसे सारी कहानी सुनाई और फिर मोबाइल माँगा। प्रेम मोबाइल देकर उसे हैरानी से देखता रहा।
- तुम टीवी वाली हो क्या कोई? कोई रियलिटी शो चल रहा है?
- अब तुम्हें मेरी मदद करनी है।
- क्या?
- एक लड़की की लाश को, मुझे नहीं पता कहाँ से लाओगे, बाहर ले जाना, ऐसी कि उसकी शक्ल पहचान में ना आए और वही कहना, जैसा डॉक्टर हमेशा कहते हैं...इसका चेहरा मत देखिएगा या कुछ भी ऐसा ही। अब बस उन्हें जल्दी से जल्दी मेरी लाश जलाने से मतलब है।
- लड़की की लाश?
- चाहे कपड़े में लपेटकर लड़का भी ले जाओ यार। कोई नहीं देखेगा। वे बस दस मिनट में उसे फूँक देंगे...और जल्दी वापस आओ, तुम्हें मुझे हिसार तक भी छोड़ना है।
बाहर हूँ मैं...
वह चुप देखता रहा। वह उसके गाल चूमकर एक खिड़की से बाहर कूद गई।
श्वेता की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण वही लिखा गया कीटनाशक पीने से और प्रेम कुमार ने ख़ुशी और जल्दबाजी के से साइन किए। उसने एक उन्नीस साल की लड़की की लाश आनन्द चौधरी और उसके साथ आए लोगों को दी, जिसे आधे घंटे बाद जला दिया गया।
श्वेता के पड़ोस की एक लड़की अगली सुबह खेतों में गई तो पुलिस की सीमारेखा लाँघ आई एक रिपोर्टर को उसने श्वेता की हत्या के बारे में बताया। एक हफ़्ते बाद दलित नरसंहार अख़बार के बीच के पन्नों और टीवी पर आधी रात की ख़बरों में शिफ़्ट हो गया लेकिन श्वेता-राहुल की प्रेमकहानी हिसार में प्यार की हत्या जैसे शीर्षकों के साथ दो महीने तक खिंची। यह भी बताया गया कि मरने से पहले वह दिल्ली में अपने प्रेमी के साथ ही रहती थी और गर्भवती थी। उसी दिन से राहुल भी गायब था, इसलिए उसकी भी हत्या होने का अनुमान लगाया जाता रहा।
कुछ नहीं होना था, यह हम सब जानते थे। इसलिए जब एक सौ दस लोगों की मृत्यु के लिए अदालत किसी को भी दोषी नहीं पा सकी तो लोगों ने टीवी चैनल बदलने के अलावा इस क्षेत्र में कोई ख़ास काम नहीं किया।
पिछली लाइन इस कहानी की आख़िरी लाइन होती यदि तीन महीने बाद की उस रात श्वेता हलदस पहुँची होती, जिस रात तीसरा भागा हुआ लड़का नोएडा में मारा गया था। वह अपने घर के सबसे अन्दर के कमरे में पहुँची, जहाँ उसके माता-पिता चिपककर सो रहे थे। उसने टॉर्च की रोशनी उन दोनों के चेहरों पर डाली। उसकी माँ जगी और हड़बड़ाकर रोशनी की ओर देखते हुए अपने कपड़े सँभालने लगी।
- मत पहन माँ कहकर श्वेता आगे बढ़ी और उसने कुल्हाड़ी से उन दोनों के सिर खोल दिए।

पहली फ़ोटो- http://thehindu.com, दूसरी फ़ोटो- Nikos Andritsakis, लव सेक्स और धोखा में श्रुति



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6 पाठकों का कहना है :

sudesh said...

वाह बहुत खूब.

चन्दन said...

कहानी अच्छी है गौरव. एक रौ में पढ़ गया.

राहुल पाठक said...

Start se end....tak ....awesome story...

himanshu said...

अच्छी कहानी ...बधाई . मैं भी एक बार में ही पढ़ गया .

संध्या आर्य said...

सच नीमचढा तो
प्यार
कांटो के बीच की खुशबू !!

Ravinder Gadhwal said...

Hello solanki ji!
क्या राहुल या स्वेता कोई एक आज के दिन जिन्दा है और है तो कहाँ?